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मैं अभी अभी मुंबई आया था, अपने ग्रहनगर की शान सरकों को पीछे चोरकर शहर की चहल पहल भरी जिंदगी में.
मैं 23 साल का था, कॉलेज से निकला था और अपनी पहचान बनाने के लिए उठसुप था.
45 वर्षिय भारतीय व्यवसाई नम्नीद उस कैफे में नियमित रूप से आता था जहां मैं काम करता था.
एक दिन, उसने मुझसे बाचीच शुरू की, "तुम यहां नए हो, है न?" उसने पूछा, उसकी आवाज गहरी और शांत थी.
मैंने सिर हिलाया, "हां, अभी अभी एक चोटे शहर से आया हूं. यह काफी बदलाव है." वह हसा, "मुझे यकीन है, लेकिन तुम्हें यहां अच्छा लगेगा. शहर में तुम्हें गले लगाने का एक तरीका है."